एक नए भारत का उदय
पिछले एक दशक में भारत ने दुनिया के मंच पर अपनी पहचान सिर्फ एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में ही नहीं, बल्कि एक formidable (अजेय) सैन्य और रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में भी बनाई है। "आत्मनिर्भर भारत" का नारा अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक हकीकत बन चुका है, जिसका सबसे शक्तिशाली प्रतिबिंब हमें देश के रक्षा क्षेत्र में देखने को मिलता है। यह एक ऐसी क्रांति है जो शांत लेकिन दृढ़ कदमों से आगे बढ़ रही है, जहाँ हम सिर्फ दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक होने की छवि से बाहर निकलकर, एक प्रमुख निर्यातक बनने की ओर अग्रसर हैं।
यह कहानी है उस बदलाव की, जहाँ भारत का रक्षा बजट दोगुना हो गया, जहाँ रक्षा निर्यात ने आसमान छू लिया, और जहाँ DRDO (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) जैसी संस्थाएं K-6 जैसी अत्याधुनिक मिसाइलें विकसित कर रही हैं, जो देश की सुरक्षा को अभेद्य किले में बदल रही हैं। इस लेख में, हम इस बहुआयामी परिवर्तन की गहराई से पड़ताल करेंगे और समझेंगे कि कैसे नीति, नवाचार और राष्ट्रीय इच्छाशक्ति ने मिलकर भारत के रक्षा क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है।
बजट का बूम: आंकड़ों की कहानी जो देश की ताकत बयां करती है
किसी भी देश की रक्षा तैयारियों का सबसे बड़ा पैमाना उसका रक्षा बजट होता है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। पिछले दस वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र में एक विशाल छलांग लगाई है।
बजट में अभूतपूर्व वृद्धि:
वित्तीय वर्ष 2013-14 में भारत का रक्षा बजट लगभग ₹2.53 लाख करोड़ था। एक दशक बाद, 2024-25 के लिए यह आंकड़ा बढ़कर ₹6.21 लाख करोड़ हो गया है। यह दोगुनी से भी ज्यादा की वृद्धि दर्शाती है कि सरकार का ध्यान सेना के आधुनिकीकरण, नई तकनीकों को अपनाने और सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करने पर कितना केंद्रित है। इस बढ़े हुए बजट का एक बड़ा हिस्सा पूंजीगत व्यय (Capital Outlay) के लिए समर्पित है, जिसका सीधा मतलब है - नए हथियार, उपकरण, विमान, जहाज और सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण। यह वृद्धि केवल सेना को मजबूत नहीं करती, बल्कि घरेलू रक्षा उद्योग को भी एक बड़ा प्रोत्साहन देती है, क्योंकि अब अधिकांश खरीद "मेक-इन-इंडिया" के तहत की जा रही है।
निर्यात का नया इतिहास: ₹686 करोड़ से ₹23,622 करोड़ के पार
सबसे आश्चर्यजनक और गौरवपूर्ण कहानी भारत के रक्षा निर्यात की है। एक दशक पहले तक, भारत की पहचान मुख्य रूप से एक हथियार आयातक के रूप में थी। लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है।
34 गुना की छलांग: वित्तीय वर्ष 2013-14 में भारत का रक्षा निर्यात मात्र ₹686 करोड़ था। हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह आंकड़ा ₹21,083 करोड़ को पार कर गया, और 2024-25 के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार यह ₹23,622 करोड़ तक पहुँच गया है (स्रोत: Times of India, Financial Express)। यह लगभग 34 गुना की ऐतिहासिक वृद्धि है।
80 से अधिक देशों को निर्यात: आज भारत लगभग 80 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण और सेवाएं निर्यात कर रहा है। इसमें विकसित और विकासशील, दोनों तरह के देश शामिल हैं।
क्या निर्यात कर रहा है भारत?: भारत के निर्यात की सूची में अब हल्के लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, अपतटीय गश्ती जहाज (Offshore Patrol Vessels), पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, रडार सिस्टम, बॉडी आर्मर, मिसाइलें (जैसे BrahMos) और कई अन्य उन्नत सिस्टम शामिल हैं। यह सूची लगातार बढ़ रही है, जो भारतीय रक्षा उद्योग की बढ़ती क्षमताओं का प्रमाण है।
यह परिवर्तन दर्शाता है कि "मेक-इन-इंडिया" अब केवल भारत के लिए बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि "मेक फॉर द वर्ल्ड" (दुनिया के लिए बनाने) के दृष्टिकोण में बदल गया है।
'आत्मनिर्भर' इंजन: वे नीतियां जिन्होंने क्रांति को हवा दी
यह अभूतपूर्व वृद्धि किसी चमत्कार का परिणाम नहीं है, बल्कि यह एक सोची-समझी रणनीति और मजबूत नीतियों का नतीजा है। सरकार ने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ (Positive Indigenisation Lists): सरकार ने सैकड़ों रक्षा उपकरणों और प्रणालियों की कई सूचियाँ जारी की हैं, जिनके आयात पर एक निश्चित समय-सीमा के बाद प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसने भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को इन वस्तुओं का देश में ही निर्माण करने के लिए मजबूर और प्रोत्साहित किया है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी: रक्षा उत्पादन को पारंपरिक रूप से सरकारी आयुध कारखानों और DPSUs (रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) का क्षेत्र माना जाता था। लेकिन अब इस क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए बड़े पैमाने पर खोल दिया गया है। L&T, Tata, Bharat Forge, और Adani Defence जैसी कंपनियाँ अब पनडुब्बियों से लेकर तोपखानों और ड्रोन तक के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, नवाचार को बढ़ावा मिला है और उत्पादन क्षमता में तेजी आई है।
iDEX (Innovations for Defence Excellence): यह पहल विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप्स, MSMEs और व्यक्तिगत इनोवेटर्स को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई है। iDEX के माध्यम से, सेना अपनी जरूरतें सीधे innovators के सामने रखती है और उन्हें प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए फंडिंग और समर्थन प्रदान करती है।
उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना: PLI योजना को ड्रोन और अन्य महत्वपूर्ण रक्षा घटकों के निर्माण के लिए लागू किया गया है, ताकि कंपनियों को भारत में अपनी निर्माण इकाइयों को स्थापित करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मिल सके।
इन सभी नीतियों ने मिलकर एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है जहाँ अनुसंधान, विकास, उत्पादन और निर्यात एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
क्राउन ज्वेल: DRDO की K-6, समुद्र के गर्भ से गरजती 'अग्नि'
भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा और रणनीतिक स्तंभ है उसकी मिसाइल क्षमता। अग्नि और पृथ्वी जैसी सतह-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइलों के बाद, भारत अब अपनी निवारक क्षमता (Deterrence Capability) को अगले स्तर पर ले जा रहा है, और इसका नाम है K-6 SLBM।
K-6 क्या है?
K-6 एक सबमरीन-लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) है, जिसे DRDO द्वारा विकसित किया जा रहा है। इसका सरल अर्थ है - एक ऐसी बैलिस्टिक मिसाइल जिसे पनडुब्बी से लॉन्च किया जा सकता है। K-सीरीज़ की मिसाइलों का नाम भारत के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सम्मान में रखा गया है।
K-6 क्यों है गेम-चेंजर?
K-6 भारत की रणनीतिक शक्ति के लिए कई मायनों में एक गेम-चेंजर है:
सेकंड-स्ट्राइक क्षमता की गारंटी: भारत की परमाणु नीति "नो फर्स्ट यूज़" (No First Use) यानी 'पहले इस्तेमाल नहीं' पर आधारित है। इसका मतलब है कि भारत कभी भी किसी पर परमाणु हमला पहले नहीं करेगा। यह नीति तभी विश्वसनीय होती है, जब आपके पास एक गारंटीकृत "सेकंड-स्ट्राइक क्षमता" हो। इसका अर्थ है कि अगर दुश्मन देश पहले हमला करके हमारे जमीनी परमाणु ठिकानों को नष्ट भी कर दे, तो भी हमारे पास जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता होनी चाहिए। K-6 यही क्षमता प्रदान करती है। समुद्र के गहरे पानी में छिपी पनडुब्बियों का पता लगाना लगभग असंभव होता है, और इन पनडुब्बियों से लॉन्च की गई K-6 मिसाइलें दुश्मन को तबाह करने की गारंटी देती हैं।
अभेद्य परमाणु त्रिकोण (Nuclear Triad): एक मजबूत परमाणु शक्ति के लिए जमीन, हवा और पानी, तीनों जगहों से परमाणु हमला करने की क्षमता होनी चाहिए। इसे "परमाणु त्रिकोण" कहते हैं। भारत के पास जमीन (अग्नि मिसाइल) और हवा (लड़ाकू विमान) से परमाणु हमला करने की क्षमता पहले से है। K-6 जैसी SLBM इस त्रिकोण के समुद्री हिस्से को पूरा करती है, जिससे भारत की निवारक क्षमता अभेद्य हो जाती है।
लंबी दूरी की मारक क्षमता: रक्षा विश्लेषकों के अनुसार, K-6 मिसाइल की रेंज 6,000 किलोमीटर से अधिक हो सकती है। यह भारत को हिंद महासागर में कहीं से भी अपने विरोधियों के महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाने की क्षमता प्रदान करती है।
भविष्य का हथियार: K-6 को भारत की भविष्य की S5-श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों पर तैनात करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये पनडुब्बियाँ वर्तमान अरिहंत-श्रेणी की पनडुब्बियों से कहीं ज़्यादा बड़ी और शक्तिशाली होंगी और एक साथ कई K-6 मिसाइलें ले जा सकेंगी।
संक्षेप में, K-6 सिर्फ एक मिसाइल नहीं है; यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा का एक शक्तिशाली बीमा है।
सिनर्जी इन एक्शन: 'मेक-इन-इंडिया' की प्रमुख सफलता की कहानियाँ
यह क्रांति केवल बड़े बजट और भविष्य की योजनाओं तक ही सीमित नहीं है। जमीन पर कई परियोजनाएं सफलतापूर्वक चल रही हैं जो 'आत्मनिर्भर भारत' की जीती-जागती मिसाल हैं:
राफेल विंग्स 'मेक-इन-इंडिया': जब भारत ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू जेट खरीदे, तो सौदे में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ऑफसेट क्लॉज शामिल थे। इसी के तहत, नागपुर में डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) का एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया गया। आज यह फैक्ट्री न केवल भारतीय राफेल के लिए बल्कि दुनिया भर के सभी राफेल जेट के लिए विंग्स (पंख) जैसे महत्वपूर्ण घटकों का निर्माण कर रही है। यह दिखाता है कि भारत अब केवल एक खरीदार नहीं, बल्कि वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
MH-60 रोमियो हेलीकॉप्टर: भारतीय नौसेना के लिए ये दुनिया के सबसे उन्नत एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टरों में से एक हैं। हालाँकि इन्हें अमेरिका से खरीदा गया है, लेकिन इनकी डिलीवरी से पहले "प्री-एक्सेप्टेंस टेस्ट" और इनके रखरखाव, मरम्मत और ओवरहॉल (MRO) में भारतीय उद्योग और विशेषज्ञों की गहरी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है, जो भविष्य में ऐसी तकनीकों को देश में ही बनाने की नींव रख रही है।
धनुष हॉवित्जर रेजिमेंट: बोफोर्स तोप के स्वदेशी उन्नत संस्करण, 'धनुष', को पहली 'मेक-इन-इंडिया' लंबी दूरी की तोप होने का गौरव प्राप्त है। इसका निर्माण ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (अब नई रक्षा कंपनियों का हिस्सा) द्वारा किया गया है। सेना में धनुष हॉवित्जर की नई रेजिमेंटों का गठन यह साबित करता है कि भारतीय उद्योग अब विश्व स्तरीय तोपखाने का सफलतापूर्वक उत्पादन और आपूर्ति करने में सक्षम है।
ये उदाहरण साबित करते हैं कि आत्मनिर्भरता का मतलब सब कुछ अकेले बनाना नहीं है, बल्कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीक को अपनाना, उसे स्थानीय रूप से बनाना और अंततः उसे स्वदेशी रूप से विकसित करना है।
भविष्य की ओर: विशाल लक्ष्य और रणनीतिक मजबूती
भारत की रक्षा क्रांति अभी थमी नहीं है। सरकार ने भविष्य के लिए और भी महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं:
रक्षा उत्पादन लक्ष्य: सरकार का लक्ष्य 2028-29 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन को ₹3 लाख करोड़ तक पहुँचाना है।
रक्षा निर्यात लक्ष्य: इसी अवधि तक, रक्षा निर्यात को ₹50,000 करोड़ के शिखर पर ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।
ये आंकड़े सिर्फ आर्थिक महत्व नहीं रखते। इनका रणनीतिक महत्व कहीं अधिक है। एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग का मतलब है कि भारत को اپنی सुरक्षा जरूरतों के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यह भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में एक 'शुद्ध सुरक्षा प्रदाता' (Net Security Provider) के रूप में अपनी भूमिका निभाने और अपनी विदेश नीति को अधिक स्वतंत्रता के साथ संचालित करने की शक्ति देता है।
निष्कर्ष
भारत के रक्षा क्षेत्र की कहानी पिछले एक दशक में नाटकीय रूप से बदल गई है। यह अब केवल सीमाओं की रक्षा करने के बारे में नहीं है; यह भविष्य का निर्माण करने, प्रौद्योगिकियों का नवाचार करने और वैश्विक मंच पर नेतृत्व करने के बारे में है। दोगुना होता रक्षा बजट, 34 गुना बढ़ता निर्यात, निजी क्षेत्र की ऊर्जा, और K-6 जैसी भविष्य की तकनीकें, ये सभी एक ही दिशा की ओर इशारा कर रहे हैं - एक ऐसा भारत जो अपनी रक्षा के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर, सक्षम और सशक्त है। यह क्रांति सिर्फ स्टील और सर्किट की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गौरव की है।
जय हिंद!
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